वेदों और पुराणों में कुश घास को पवित्र माना गया है। इसे कुशा, दर्भ या डाभ भी कहा गया है। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार के शरीर से कुशा बनी है। हिंदू धर्म के अनुष्ठान और पूजा-पाठ में कुशा का उपयोग किया जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान कुशा का उपयोग जरूरी है। इसके बिना तर्पण अधूरा माना गया है। कुशा की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली में पहनी जाती है। जिसे पवित्री कहा जाता है। ग्रंथों में बताया गया है इसके उपयोग से मानसिक और शारीरिक पवित्रता हो जाती है। पूजा-पाठ के लिए जगह पवित्र करने के लिए कुश से जल छिड़का जाता है। कुशा का उपयोग ग्रहण के समय भी किया जाता है। ग्रहण से पहले खाने-पीने की चीजों में कुशा डाली जाती है। ग्रहण काल के दौरान खाना खराब न हो और पवित्र बना रहे, इसलिए ऐसा किया जाता है। इस बारे में तमिलनाडु की SASTRA एकेडमी की रिसर्च में पता चला है कि कुश घास एक नेचुरल प्रिजर्वेटिव के रूप में काम करती है। इसका उपयोग दवाईयों में भी किया जाता है। कुश में प्यूरिफिकेशन एजेंट है।
Kusha patti for puja, कुश घास, पवित्री
₹20.00
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